Poetries of Gulzar

Bas Ek Lamhe Ka Jhagda Tha – Gulzar Poem

बस एक लम्हे का झगड़ा था। Bas Ek Lamhe Ka Jhagda Tha – Beautiful Poem (Nazm) by Gulzar in Hindi बस एक लम्हे का झगड़ा था दर-ओ-दीवार पे ऐसे छनाके से गिरी आवाज़ जैसे काँच गिरता है हर एक शय में गई उड़ती हुई, चलती हुई, किरचें नज़र में, बात में, लहजे में, सोच और साँस …

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Barf Pighlegi – Gulzar Poems in Hindi

बर्फ़ पिघलेगी | Barf Pighlegi – Beautiful Poem (Nazm) by Gulzar in Hindi बर्फ़ पिघलेगी जब पहाड़ों से और वादी से कोहरा सिमटेगा बीज अंगड़ाई लेके जागेंगे अपनी अलसाई आँखें खोलेंगे सब्ज़ा बह निकलेगा ढलानों पर गौर से देखना बहारों में पिछले मौसम के भी निशाँ होंगे कोंपलों की उदास आँखों में आँसुओं की नमी …

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Nazm Uljhi Hui Hai Lyrics (Gulzar Poems)

नज़्म उलझी हुई है | Nazm Uljhi Hui Hai – Beautiful Nazm by Gulzar in Hindi नज़्म उलझी हुई है सीने में मिसरे अटके हुए हैं होठों पर उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा बस तेरा नाम …

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Baarish Aane Se Pehle (Gulzar Poems Hindi)

बारिश आने से पहले | Baarish Aane Se Pehle – Beautiful Poem (Nazm) by Gulzar in Hindi बारिश आने से पहले बारिश से बचने की तैयारी जारी है सारी दरारें बन्द कर ली हैं और लीप के छत, अब छतरी भी मढ़वा ली है खिड़की जो खुलती है बाहर उसके ऊपर भी एक छज्जा खींच …

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Ek Purana Mausaam Lauta Lyrics (Gulzar Poems Hindi)

एक पुराना मौसम लौटा | Ek Purana Mausaam Lauta (Lyrics) – Beautiful Poem (Nazm) by Gulzar in Hindi Ek Purana Mausaam Lauta याद भरी पुरवाई भी ऐसा तो कम ही होता है वो भी हों तनहाई भी यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं कितनी सौंधी लगती है तब माज़ी की रुसवाई भी …

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Ik Imaraat (Gulzar Poems Hindi)

इक इमारत | Ik Imaraat – Beautiful Poem (Nazm) by Gulzar in Hindi इक इमारत है सराय शायद, जो मेरे सर में बसी है. सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते हुए जूतों की धमक, बजती है सर में कोनों-खुदरों में खड़े लोगों की सरगोशियाँ, सुनता हूँ कभी साज़िशें, पहने हुए काले लबादे सर तक, उड़ती हैं, भूतिया महलों में …

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Kitabe Jhakti Hai (Gulzar Poems Hindi)

किताबें झाँकती है  | Kitabe Jhakti hai – Beautiful Poem (Nazm) by Gulzar in Hindi किताबें झाँकती है बंद अलमारी के शीशों से बड़ी हसरत से तकती है महीनों अब मुलाक़ातें नही होती जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थी अब अक्सर गुज़र जाती है कम्प्यूटर के परदे पर बड़ी बैचेन रहती है किताबें …

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